
राजनीति की विडंबना देखिये कल तक जो हिंदुत्व और उसके प्रतीकों का मज़ाक उड़ाते थे ,तीर्थस्थलों की हेटी करते थे ,मंदिरों को लौंडिया- छेड़ अड्डा बतलाते थे आज लिबास बदलने को मज़बूर हैं।
इनमें राजा भोज कौन है जिसने राजा दिग्गी को गंगू तेली बना दिया ,राहुल दत्तात्रेय कौन है ,श्राद्ध का कौवा कौन है और सेंट्रम येचुरी कौन है ये आप पहचानिये।
हिंदुत्व का डंका और शंखनाद कुछ इस तरह से हवाओं में गूँज रहा है कि हर कोई अपने को हिंदू कहने बतलाने को मचल उठा है। एक लोक उक्ति ज़बान पर चली आई है जो इस स्थिति का खुलासा करने के योग्य है :
जब ... लगी फटने ,नियाज़ लगी बँटने
पुनश्चय :
ये हैं दोस्तों !बहरूपिये !भले आप इन्हें 'वेषधारी भगत' कह लें। काम सभी का एक ही है। हिन्दुस्तान को कैसे तोड़ा जाए। सनातन परम्पराओं को कैसे पलीता लगाया जाए। इनमें कई बौद्धिक भकुए हैं मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलाम हैं आजकल इन्हें जेहादियों से पैसा मिल रहा है , शर्त एक ही है राष्ट्रवादी सांस्कृतिक भारत से ताल्लुक रखने वाली हर संस्था से घृणा की जाए। फिर चाहे पेड़ पे सोना पड़े या कैलाश की छद्म यात्रा करनी पड़े। इनमें एक है स्याह काला काग उर्फ़ कमल घात , पहचान
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